रॉकेट कैसे काम करते हैं ?
अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी की शुरुआत के बाद से ही रॉकेट, अंतरिक्ष में परिवहन का एकमात्र साधन है। अंतरिक्ष में उपग्रहों को उनके उपयुक्त कक्षाओं में पहुचाने से लेके अंतरिक्ष यात्री को पृथ्वी से लाखों किलोमीटर दूर चाँद तक ले जाने में रॉकेट का अहम योगदान है।
यह अवधारणा आपको बहुत सरल लगती होगी की सामान को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाना कौन सी बड़ी बात है, लेकिन आपको इसकी जटिलता तभी समझ मे आएगा जब आप कोई वैसे पाठ्यक्रम से जुड़े हो जिसमे यह बताया गया हो की अंतरिक्ष के इच्छित कक्षाओं में उपग्रहों को ले जाने के लिए रॉकेट लॉन्च करने की क्या विधि है।
हालांकि, आपको रॉकेट साइंस को समझने के लिए आपको चिंता करने की जरूरत नहीं है। ऐसा सोचिए, उपग्रह एक यात्री है जिसे अंतरिक्ष के किसी विशिष्ट ऊंचाई पर रखने की आवश्यकता है। रॉकेट इसमे परिवहन का कार्य करेंगे और कुछ हजारों किलोमीटर की यात्रा के बाद उसे एक इच्छित कक्षा में स्थापित कर दिया जाएगा जहाँ उपग्रह उसी कक्षा में चक्कर लगाते-लगाते अंतरिक्ष के कई राज को पर्दाफास करेंगे।
विज्ञान की भाषा में बोले तो, रॉकेट के प्रक्षेपण से लेके सॅटॅलाइट को कक्षा में स्थापित करने तक बहुत ही उन्नत सिस्टम की आवश्यकता होती है जो रॉकेट के दिशा, ऊंचाई, वेग एवं अन्य मापदंडों को हर क्षण गाइडेंस एंड कण्ट्रोल रूम को देता रहता है, जिससे एक उपग्रह को वांछित कक्षा में स्थापित किया जा पता है।
रॉकेट का प्रक्षेपण मुख्य रूप से संवेग के संरक्षण के सिद्धांत पर आधारित है। न्यूटन के गति के तीसरे नियम जिसके अनुसार प्रत्येक क्रिया की समान और विपरीत प्रतिक्रिया होती है। यही सिद्धांत एक रॉकेट को अंतरिक्ष में चलने में सक्षम बनाती है। रॉकेट में बड़े-बड़े सिलेंडरो में तरल ईंधन एवं आक्सीकारक होता है, जो जलकर तेज दबाब के साथ नॉज़ल से गैसों को निचे की तरफ फेकती है जिससे ऊपर के तरफ रॉकेट को संवेग मिल जाता है और वह ग्रुत्वकर्षण के विरुद्ध अपने वजन के साथ-साथ उपग्रह एवं अन्य पेलोड्स को लेके ऊपर के तरफ गति करने लगता है।
रॉकेट को पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र से बाहर निकलने के लिए न्यूनतम 11.2 किलोमीटर/घंटे की रफ़्तार से गति करनी होती है। हज़ारों किलोग्राम वजन के साथ इतनी वेग प्राप्त करना मुश्किल होता है इसलिए मल्टीस्टेज रॉकेट का निर्माण किया जाता है।
मल्टीस्टेज रॉकेट में ईंधन को कई चरणों में प्रज्वलित किया जाता है। रॉकेट में मुख्य रूप से तरल ईंधन प्रयोग होते है लेकिन कुछ ठोस बूस्टर्स अंतरिक्ष यान के किनारे लगाए जाते है जो रॉकेट को और गति प्रदान करता है।
मल्टीस्टेज रॉकेट में जब पहले चरण को प्रज्वलित किया जाता है, तो यह रॉकेट को पेलोड के साथ कुछ ऊंचाई तक ले जाता है और कुछ गति प्रदान करता है। जब पहले स्टेज का ईंधन ख़त्म हो जाता है तो खाली ईंधन कंटेनर जिन्हें डेड वेट कहा जाता है, उन्हें रॉकेट के मुख्य हिस्से से अलग कर दिया जाता है और उसी क्षण दूसरा चरण आगे त्वरण प्रदान करता है और यह प्रक्रिया तब तक जारी रहती है जब तक कि रॉकेट वांछित ऊंचाई तक नहीं पहुंच जाता।