Indian Heritage and Capitalism
हम भारतवर्ष के सांस्कृतिक बहुलता एवं विविधता से परिचित हैं। हम भारतवासी, धर्म, त्योहार, खान पान जलवायु एवं मौसम में विविधता के मामले में काफी आगे है। यहां के लोग विभिन्न तरह के संस्कृति एवं कलाकृतियों को पोषित करते आ रहे है। भारत में भौगोलिक विविधता होने के कारण यह के लोगों के शारीरिक बनावट में भी काफी विविधता देखने को मिलता है । उत्तर भारत के हिमालय में जमा देने वाली ठंड एवं पश्चिम भारत के झुलसा देने वाली थार रेगिस्तान आप इसी बात से भारत में भौगोलिक विविधता का अंदाजा लगा सकते हैं। लाजमी है कि इतने सांस्कृतिक विविधता वाले देश में हमारे पूर्वजों ने हमें एक महान विरासत प्रदान की होगी। सांस्कृतिक विरासत से राष्ट्र का गौरव जुड़ा होता है यह देशवासियों में एकीकरण एवं भाईचारे की अवधारणा का सृजन करती है। पूर्वजों के द्वारा हमें विभिन्न प्रकार के विरासत मिलती है। इमारतें, कलाकृतियाँ, चित्रकला एवं उनके द्वारा विकसित बौद्धिक अध्ययन, ज्ञान ग्रंथ एवं वैज्ञानिक खोजें सभी राष्ट्रीय सांस्कृतिक विरासत के उदाहरण है। प्राकृतिक वातावरण, वनस्पति एवं उनमें पल रहे जनजातियों को भी राष्ट्रीय सांस्कृतिक विरासत में शामिल किया जाता है। हम भारतवासियों को भी हमारे पूर्वजों ने एक समृद्ध सांस्कृतिक विरासत प्रदान किया है। लालकिला, ताजमहल, चारमीनार, विक्टोरिया मेमोरियल, क़ुतुबमीनार एवं ऐसे सैकड़ो इमारतें है जो भारत के गौरव को बढ़ाती है एवं हम देशवासियों की गरिमा है।
संस्कृति ही मानव को मानव बनती है किन्तु आधुनिक युग में बढ़ते शहरीकरण एवं पश्चिमी संस्कृति के प्रभाव में आकर हम अपनी संस्कृति को भूलते जा रहे है। हालाँकि, यह बात सत्य है की संस्कृति प्रवर्तनशील होती है लेकिन हमारी जिम्मेवारी यह भी है कि पूर्वजों द्वारा प्रदान की गई संस्कृति, कलाकृतियों एवं इमारतें जो हमें विरासत के रूप में मिली है उसका संरक्षण करे। भारत सरकार इस पहल में कई योजना भी चलाये है जो काफी हद तक सफल भी हुए है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, राज्य पुरातत्व विभाग एवं पर्यटन विभाग मिलकर ऐसे सारे स्थलों को चिन्हित करके उन्हें पर्यटक स्थल बना रही है जो भारतीय संस्कृति एवं देश के विरासत से जुडी हुई है।
पर्यटन से आय एक देश के लिए महत्वपूर्ण आमदनी का स्रोत होता है। सांस्कृतिक विरासत का प्रयोग करके सरकार किसी स्थल को व्यापक स्तर पर पर्यटन, रोजगार सृजन, कुटीर एवं हस्तशिल्प उद्योगों का बढ़ावा देने में कर सकती है हालाँकि, किसी सांस्कृतिक विरासत को केंद्र में रखते हुए पर्यटन स्थल का निर्माण एवं रख-रखाव में काफी लागत एवं पूंजी लगती है। इसी पूंजी शब्द से ही पूंजीवाद का हमारे सांस्कृतिक विरासत में दखल हो जाता है। सरकार हमारे सांस्कृतिक धरोहरों को रक्षा करने में सक्षम है किन्तु वे इस कार्य को भी पूंजीपतियों के हाथ में सौपना चाहती है। सितम्बर 2017 में भारत के पर्यटन मंत्रालय ने Adopt the Heritage योजना का शुरुआत किया था जिसके अंतर्गत 100 ऐतिहासिक विरासत स्थलों को प्राइवेट कंपनियों को सौंप दिया।
निजीकरण कोई बूरी बात नहीं है बल्कि मेरा मानना है की पूंजीवाद से ऐसे कई क्षेत्रों में सुधार लाया जा सकता है जहाँ सरकार को कर्मचारियों के सुस्ती एवं प्रतिस्पर्धा प्रवृति के कमी के कारण नुकसान सहना पड़ता है। लेकिन सांस्कृतिक विरासत में पूंजीवाद का दखल हमारे देश एवं देशवासियों के स्वाभिमान, संप्रभुता एवं अखंडता पर गहरा चोट है।