Satellite क्या है और ये कैसे काम करते है ?

Satellite क्या है और ये कैसे प्रयोग किये जाते है  ?

उपग्रह वे खगोलीय या कृत्रिम पिंड है जो किसी अन्य ग्रह के चारों ओर चक्कर लगाते है। आप चन्द्रमा को ही ले लो। वह पृथ्वी के चारों ओर चक्कर लगाती है, इसलिये चन्द्रमा पृथ्वी का एक उपग्रह है। उपग्रह वास्तव में एक वेहद ही अद्भुत प्रौद्योगिकी है। अंतरिक्ष में उनकी अपनी सुन्दर दुनिया है। आगे इस लेख में यह समझेंगे की उपग्रहों का इस आधुनिक दुनिया में कहाँ - कहाँ प्रयोग किया जाता है और उनकी विविध उपयोगिता क्या है। आप कृत्रिम उपग्रहों  के बारे में भी जानेंगे जो आकाशीय पिंडों जो आम तौर पर पृथ्वी, चंद्रमा, मंगल, बृहस्पति एवं अन्य ग्रहो के चारों ओर घूमते हैं।

उपग्रह कितने प्रकार के होते है ?

उपग्रह दो प्रकार के होते है। पहला प्राकृतिक  उपग्रह और दूसरा कृत्रिम उपग्रह।

प्राकृतिक उपग्रह : वैसे उपग्रह जो प्राकृतिक रूप से किसी अन्य ग्रह या कोई खगोलीय पिंड का चक्कर लगते है वो प्राकृतिक उपग्रह कहलाता है।

कृत्रिम उपग्रह : वैसे उपग्रह जो कृत्रिम रूप से मानव के द्वारा अंतरिक्ष में किसी ग्रह के परिक्रमा करने के लिए भेजे गए है, उन्हें कृत्रिम उपग्रह कहते हैं।

प्राकृतिक उपग्रहों को कोई अन्य भाग में नहीं बांटा जाता हालाँकि कृत्रिम उपग्रहों को उनके अनुप्रयोग के अनुसार वर्गीकृत किया जाता है।

कृत्रिम उपग्रहों को कितने भागों में बांटा गया है ?

जैसा हमने आपको बताया सैटेलाइट्स को उनके प्रयोग के अनुसार वर्गीकृत किया जाता है। अतः उनके कई अन्य रूप देखने को मिल सकते है। मुख्य रूप से कृत्रिम उपग्रहों को निम्न 5 भागों में विभाजित किया जाता है :

खगोलीय उपग्रह : इन उपग्रहों का प्रयोग अंतरिक्ष में क्षिपे रहसयों को पता लगाने एवं ग्रहों और आकाशगंगाओं की आंतरिक घटनाओं का निरीक्षण करने के लिए किया जाता है। इन उपग्रहों पर पेलोड के रूप में बड़े - बड़े दूरबीन, मौसम के पूर्वानुमान के लिए उपकरण एवं अन्य ग्रहों पर रोवर भेजें जाते है। 

संचार उपग्रह : जैसा की नाम से स्पष्ट है संचार उपग्रहों का प्रयोग पृथ्वी पर संचार वयवस्था को बेहतर बनाने में किया जाता है। इन उपग्रहों के पेलोड में ट्रांसपोंडर, रेडियो ट्रांसमीटर, रेडियो रिसीवर एवं सिग्नल आवर्धक जैसे इलेक्ट्रॉनिक्स मौजूद होते है। 

जैव उपग्रह : जैव उपग्रह अंतरिक्ष में जीवित प्राणी, पौधों एवं अन्य जंतुओं पर शोध किया जाता है। अंतरिक्ष के अत्यंत चरम वातावरण में उनके विकाश एवं होने वाले परिवर्तनों पर नजर रखा जाता है ताकि अंतरिक्ष को भी रहने लायक बनाया जा सके। इन उपग्रहों पर शून्य ग्रुत्वकर्षण में इन जंतुओं के जीवन पर असर को मानव जाती से सम्बन्ध बनाया जाता है, जिससे की मानव जाती का अंतरिक्ष में जीवन संभव हो पाये। 

कर्मीक उपग्रह : यह उपग्रह को अन्य नाम जैसे स्पेस शटल, कार्मिक उपग्रह एवं Crew  Satellite से भी जाना जाता है। इन उपग्रहों का प्रयोग अंतरिक्ष में उपस्थित पहले से स्पेस स्टेशनों में जरुरत की सामान को डिलीवर किया जाता है। इन सैटेलाइट्स से  प्रयोग वैज्ञानिको को  अंतरिक्ष के कक्षाओं में पहुंचाया जाता है ताकि वे अपने काम एवं शोध को अंतरिक्ष में संपन्न कर सके। 

अंतरिक्ष स्टेशन : अंतरिक्ष में दीर्घकालिक अभियानों के लिए अंतरिक्ष स्टेशन का निर्माण किया जाता है। अंतरिक्ष स्टेशन आकर में काफी बड़े होते है। उन्हें GSLV या PSLV जैसे राकेट प्रक्षेपकों से एक बार में उनके कक्षा में स्थापित नहीं किया जा सकता। उन्हें कई टुकड़ो में करके अंतरिक्ष में भेजा जाता है और वही उन्हें संयोजित किया जाता है। अंतर्राष्ट्रीय स्पेस स्टेशन (ISS) जो 1998 में कक्षा में स्थापित किया गया था जो आज भी Low Earth Orbit में 7.66 km/h के स्पीड से पृथ्वी की चक्कर काट रहा है। 

उपग्रह अंतरिक्ष में कैसे टिके रहते है ?

आप न्यूटन के नियमों से भली भांति परिचित होंगे। उनके नियम किसी भी पिंड पर कार्य करने वाली बालों एवं गति के बीच के सम्बन्ध को बताती है। उपग्रह अंतरिक्ष में गरुत्वीय बल को नष्ट करने के लिए ग्रह के चरों ओर एक निश्चित गति से चक्कर लगाते रहती है, जिससे उपग्रह पर अपकेन्द्रीय बल कार्य करने लगती है। अपकेन्द्रीय बल के कारण उपग्रह पर ग्रह जो कि केंद्र में होता है उस उस केंद्र से दूर के तरफ बल लगती है। वह बल ग्रह के द्वारा उत्प्पन गरुत्वीय  बल के बराबर होती है और क्योंकि दोनों विपरीत दिशा में काम करने वाली बल बराबर है इसलिए उपग्रह, ग्रह से एक निश्चित दुरी पर एक वृत्तीय कक्षा में बिना गिरे चक्कर लगाती रहती है।

उपग्रह का अंत  कैसे होता हैं ?

अंतरिक्ष में वैसे तो कोई हवा या वायुमंडल नहीं होता जिससे की एक उपग्रह अपने कक्षा से विचलित हो। हालाँकि, वहाँ अन्य ग्रहों एवं खगोलीय पिंडों के कारण उनपर गुरुत्वाकर्षण बल कार्य करता है। हालाँकि प्रायः ग्रुत्वकर्षण बल संतुलित होते है जिससे उपग्रह के कक्षा पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। मुख्य रूप से सौर विकिरण एक उपग्रह को उनके कक्षा को विचलित करते है। जिससे या तो वे वायुमंडल में प्रवेश करके जल जाते है या अपने कक्षा से दूर, मलबे की कक्षा में गिर जाते है।

कई बार उपग्रहों का अंत तब होता है जब उनके उपतंत्र संचालन विफल हो जाता है। क्योंकि उन ख़राब उपग्रहों को ठीक करने का कोई लाभदायक तरीका नहीं है, अतः उपग्रह को बचे ईंधन की सहायता से सुरक्षित कक्षा में भेज दिए जाते हैं जिन्हें Debris Orbit भी कहा जाता है। इस तरह, एक उपग्रह का संचालन समाप्त हो जाता है।

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